6 जुलाई 2025 को विश्व ने करुणा, अहिंसा और आध्यात्मिक नेतृत्व के प्रतीक, तेनजिन ग्यात्सो – 14वें दलाई लामा का 90वां जन्मदिन मनाया। ये अवसर केवल एक महान आध्यात्मिक नेता की दीर्घायु का उत्सव नहीं, बल्कि उनके द्वारा प्रचारित शांति, दया और वैश्विक भाईचारे के सिद्धांतों की पुनः स्मृति भी है।
दलाई लामा ने इस अवसर पर दुनिया भर के शुभचिंतकों को धन्यवाद देते हुए कहा, “मैं केवल एक साधारण बौद्ध भिक्षु हूं, लेकिन यदि मेरे जन्मदिन को करुणा और परोपकार को बढ़ावा देने के अवसर के रूप में उपयोग किया जा रहा है, तो मैं उसकी सराहना करता हूं।”
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दलाई लामा कौन हैं? – एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

दलाई लामा, तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग संप्रदाय के सर्वोच्च नेता माने जाते हैं। यह उपाधि पहली बार 1578 में मंगोल शासक अल्तान खान द्वारा दी गई थी।
वर्तमान में 14वें दलाई लामा, तेनजिन ग्यात्सो का जन्म 6 जुलाई 1935 को उत्तर-पूर्व तिब्बत के एक किसान परिवार में हुआ था। मात्र दो वर्ष की आयु में उन्हें 13वें दलाई लामा के पुनर्जन्म के रूप में पहचाना गया और तब से उन्होंने तिब्बत का धार्मिक नेतृत्व संभाला।
आध्यात्मिक भूमिका और वैश्विक प्रतिष्ठा
दलाई लामा बौद्ध धर्म में अवलोकितेश्वर (करुणा के बोधिसत्व) के अवतार माने जाते हैं। वह न केवल तिब्बती समुदाय के धार्मिक नेता हैं, बल्कि वैश्विक मंच पर शांति और अहिंसा के संदेशवाहक भी हैं। 1989 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जिसने उन्हें वैश्विक शांति का प्रतीक बना दिया।
दलाई लामा के जन्मदिन संदेश में गहराई
अपने जन्मदिन की पूर्व संध्या पर, दलाई लामा ने एक भावनात्मक संदेश में कहा
> “मैं अपने 90वें जन्मदिन के अवसर पर उन सभी शुभचिंतकों को धन्यवाद देना चाहता हूं, जो करुणा, सहृदयता और परोपकार को बढ़ावा देने के लिए प्रयास कर रहे हैं।
“इस संदेश में उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वह निजी रूप से जन्मदिन समारोहों में शामिल नहीं होते, लेकिन यदि उनका उपयोग मानवता के लिए भलाई के कार्यों में किया जाए तो वह उसका स्वागत करते हैं।
भारत और तिब्बती समुदाय के साथ संबंध
1959 में चीन के तिब्बत पर नियंत्रण के बाद, दलाई लामा ने भारत में शरण ली और धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) को निर्वासित तिब्बती सरकार का केंद्र बनाया। भारत में लगभग 1,00,000 तिब्बती शरणार्थी बसे हुए है । भारत ने उन्हें आध्यात्मिक शरणार्थी का दर्जा देकर वैश्विक मानवीय नेतृत्व की मिसाल कायम की। अपने जन्मदिन से पहले दलाई लामा ने एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि
“हमें निर्वासन में आए इतने वर्ष बीत गए हैं और तिब्बती लोग अतुलनीय रूप से मजबूत रहे हैं। यद्यपि हम निर्वासन में रह रहे हैं, फिर भी मेरे नेतृत्व में हमने अपने धर्म और संस्कृति को संरक्षित करने में वास्तव में अच्छा काम किया है।
अवलोकितेश्वर का आशीर्वाद और दीर्घायु की कामना
“The Hindu” के लेख के अनुसार एक हालिया सार्वजनिक समारोह में 15,000 से अधिक अनुयायियों को संबोधित करते हुए दलाई लामा ने कहा
> “मुझे कई संकेत मिले हैं कि अवलोकितेश्वर का आशीर्वाद मेरे साथ है। मैं अभी और 30-40 वर्ष जीने की इच्छा रखता हूं आपकी दुआओं का फल मुझे मिला है।’ उन्होंने यह भी बताया कि बचपन से ही उन्हें लगता था कि उनका अवलोकितेश्वर से गहरा नाता है। हंसते हुए उन्होंने कहा, ‘मैं 130 साल से ज्यादा जीना चाहता हूं । ‘ताकि बौद्ध धर्म और तिब्बती जनता की सेवा कर सकूं।”
कैसे होता है ? दलाई लामा के उत्तराधिकारी का चयन
दलाई लामा की चयन प्रक्रिया तिब्बती बौद्ध धर्म की एक विशेष परंपरा है, जिसमें विश्वास किया जाता है कि दलाई लामा अवलोकितेश्वर (करुणा के बोधिसत्व) के पुनर्जन्म होते हैं। जब वर्तमान दलाई लामा का निधन होता है, तो वरिष्ठ लामाओं की एक विशेष टीम उनकी पुनर्जन्म की खोज शुरू करती है। यह टीम ध्यान, स्वप्न, पवित्र झील “ल्हामो लात्सो” में दर्शन और दिव्य संकेतों के माध्यम से पुनर्जन्म के स्थान और संभावित बालक के बारे में संकेत प्राप्त करती है। इसके बाद वे विभिन्न गांवों में जाकर बच्चों की जांच करते हैं और उन्हें पिछले दलाई लामा की वस्तुएँ पहचानने के लिए दी जाती हैं। जो बच्चा सही वस्तुएं पहचानता है और जिसका व्यवहार संतुलित व आध्यात्मिक होता है, उसे दलाई लामा का पुनर्जन्म माना जाता है।
एक बार पुनर्जन्म की पुष्टि हो जाने के बाद उस बच्चे को धार्मिक शिक्षा दी जाती है और उसे मठ में प्रशिक्षित किया जाता है। तिब्बती बौद्ध धर्म के वरिष्ठ धर्मगुरु इस चयन को औपचारिक मान्यता देते हैं। हाल के वर्षों में, चीन और तिब्बत के बीच राजनीतिक टकराव के चलते अगली दलाई लामा की पहचान को लेकर विवाद बना हुआ है। वर्तमान 14वें दलाई लामा, तेनजिन ग्यात्सो, ने संकेत दिया है कि उनका अगला जन्म भारत में हो सकता है या वह पुनर्जन्म लेना ही बंद कर सकते हैं। यह चयन प्रक्रिया तिब्बती संस्कृति और बौद्ध आस्था की गहराई को दर्शाती है, जो केवल धार्मिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी रखती है।
दलाई लामा के उत्तराधिकारी को लेकर चीन-तिब्बत विवाद
दलाई लामा का उत्तराधिकार केवल धार्मिक नहीं, बल्कि एक वैश्विक भू-राजनीतिक मुद्दा बन गया है। चीन यह दावा करता है कि दलाई लामा का चयन केवल उसकी अनुमति से वैध होगा, जबकि तिब्बती समुदाय और स्वयं दलाई लामा ने इसे धार्मिक स्वतंत्रता पर आक्रमण बताया है।
चीन की रणनीति:
2016 में चीन ने पुनर्जन्म पहचान के लिए ऑनलाइन सिस्टम शुरू किया।
‘गोल्डन अर्न’ नामक विधि को लागू कर उत्तराधिकारी चयन में हस्तक्षेप कर रहा है।
1995 में चीन ने स्वयं पंचेन लामा नियुक्त किया, जबकि असली पंचेन लामा को गायब कर दिया गया।
निष्कर्ष: दलाई लामा के 90 साल का प्रकाशपुंज
दलाई लामा के 90वें जन्मदिन पर पूरी दुनिया ने शांति, अहिंसा और मानवता के प्रतीक का सम्मान किया। यह केवल एक जन्मदिन नहीं, बल्कि मानव चेतना की उस ऊंचाई का उत्सव है जो भौगोलिक सीमाओं से परे है।
जहां एक ओर चीन धार्मिक नियंत्रण की कोशिशों में व्यस्त है, वहीं दलाई लामा की विचारधारा आज भी करोड़ों लोगों को करुणा और सत्य के पथ पर चलने के लिए प्रेरित कर रही है।