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जबलपुर बनेगा इतिहास: देश का पहला हिंदी में MBBS कराने वाला मेडिकल कॉलेज शुरू करने की तैयारी

भारत की शिक्षा व्यवस्था में एक ऐतिहासिक परिवर्तन की शुरुआत हो चुकी है, और इसकी अगुवाई कर रहा है मध्य प्रदेश का जबलपुर शहर। यहां देश का पहला हिंदी में MBBS कराने वाला हिंदी माध्यम मेडिकल कॉलेज खुलने जा रहा है, जो चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में मातृभाषा को प्राथमिकता देने की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह संस्थान 2027–28 शैक्षणिक सत्र से शुरू होने की उम्मीद है और इसका उद्देश्य छात्रों को मातृभाषा में चिकित्सा की पढ़ाई करवाना है। इस नई पहल से उन छात्रों को सीधा लाभ मिलेगा जो अंग्रेजी के अभाव में मेडिकल की पढ़ाई से वंचित रह जाते थे। मध्यप्रदेश सरकार और केंद्र सरकार के सहयोग से यह योजना अस्तित्व में आई है। इस कॉलेज में छात्रों को एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी तरह हिंदी भाषा में कराई जाएगी, जिसमें सभी तकनीकी शब्दों और चिकित्सा से जुड़ी जानकारी को सरल हिंदी में अनुवादित किया गया है। यह केवल एक भाषा परिवर्तन नहीं बल्कि एक समावेशी शिक्षा प्रणाली की ओर क्रांतिकारी कदम है, जिसमें ग्रामीण और साधन-वंचित छात्रों को भी डॉक्टरी की शिक्षा सुलभ होगी।

हिंदी में MBBS के पाठ्यक्रम की संरचना और छात्र प्रवेश

प्रारंभिक क्षमता: जागरण के लेख के अनुसार कॉलेज के 2027-28 सत्र में 50 एमबीबीएस सीटें प्रस्तावित की गई हैं। अभी किसी नए अस्पताल के निर्माण के बजाय, छात्रों को जबलपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज से संबद्ध अस्पतालों में क्लीनिकल प्रशिक्षण दिया जाएगा।

हिंदी में MBBS की पढ़ाई: चिकित्सा शिक्षा में ऐतिहासिक पहल

भारत में दशकों से चिकित्सा शिक्षा अंग्रेजी भाषा में दी जाती रही है, जिससे लाखों प्रतिभाशाली छात्र सिर्फ भाषा की बाधा के कारण पीछे रह जाते थे। जबलपुर स्थित नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज ने इस रुकावट को समाप्त करते हुए अब हिंदी में एमबीबीएस की पढ़ाई शुरू की है। इस पहल के तहत MBBS की तीनों प्रमुख विषयों – एनाटॉमी, फिजियोलॉजी और बायोकेमिस्ट्री – को हिंदी में अनुवादित कर छात्रों के लिए सुलभ बनाया गया है। इसके लिए विशेषज्ञों की एक टीम ने मिलकर मेडिकल की कठिन पुस्तकों और टर्मिनोलॉजी को इस तरह बदला है कि उसका वैज्ञानिक अर्थ भी बना रहे और छात्रों के लिए समझना आसान हो। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि यह ‘नए भारत की नई सोच’ है, जहां शिक्षा अब छात्र की समझ और जड़ से जुड़ी भाषा में मिलेगी।

छात्रों के लिए वरदान साबित होगा हिंदी में MBBS कराने वाला हिंदी माध्यम मेडिकल कॉलेज

इस कॉलेज की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह उन लाखों छात्रों के लिए एक वरदान साबित होगा जो ग्रामीण या हिंदी भाषी पृष्ठभूमि से आते हैं और जिनके लिए मेडिकल की पढ़ाई अब तक एक सपना मात्र थी। हिंदी माध्यम मेडिकल कॉलेज उनके लिए न केवल एक नया विकल्प खोलेगा, बल्कि आत्मविश्वास भी बढ़ाएगा। जब छात्र अपनी भाषा में पढ़ते हैं, तो वे विषय की गहराई को और बेहतर समझ पाते हैं। यही कारण है कि इस नए मेडिकल कॉलेज को न केवल हिंदी भाषी राज्यों, बल्कि पूरे देश से सकारात्मक प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं।

राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव: यदि यह प्रयोग सफल रहा, तो यह अन्य हिंदी भाषी राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, छत्तीसगढ़ आदि में भी प्रेरणा का स्रोत बनेगा। आने वाले वर्षों में भारत में क्षेत्रीय भाषाओं में चिकित्सा शिक्षा को बढ़ावा देने का मार्ग प्रशस्त होगा।

एमबीबीएस के बाद अब हिंदी में एमडी और एमएस की भी तैयारी

दैनिक एमबीबीएस को हिंदी में पढ़ाने के बाद अब सरकार की योजना एमडी (डॉक्टर ऑफ मेडिसिन) और एमएस (मास्टर ऑफ सर्जरी) जैसे पोस्ट-ग्रेजुएट पाठ्यक्रमों को भी हिंदी माध्यम में उपलब्ध कराने की है। इसका सीधा असर न केवल मेडिकल स्टूडेंट्स पर पड़ेगा, बल्कि आने वाले वर्षों में देश की स्वास्थ्य सेवाओं पर भी पड़ेगा। मातृभाषा में पढ़े हुए डॉक्टर मरीजों से बेहतर संवाद कर पाएंगे और ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य सेवाएं अधिक सशक्त होंगी। इसके साथ ही मेडिकल टीचिंग के लिए हिंदी में अधिक से अधिक टेक्स्टबुक्स, नोट्स, और ऑडियो-विजुअल कंटेंट तैयार किया जा रहा है, ताकि छात्रों को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी मदद मिल सके। यह एक ऐसा बदलाव है जो मेडिकल शिक्षा के पूरे इकोसिस्टम को बदल सकता है, जहां डॉक्टर और मरीज दोनों एक ही भाषा में संवाद कर सकेंगे।

चिकित्सा में मातृभाषा का प्रभाव: एक राष्ट्रीय मॉडल बनने की दिशा में कदम

इस पूरे प्रयास का दूरगामी प्रभाव केवल एक राज्य या कॉलेज तक सीमित नहीं रहेगा। यदि यह मॉडल सफल होता है (जिसकी संभावना प्रबल है), तो अन्य राज्यों में भी इसी प्रकार के हिंदी या क्षेत्रीय भाषाओं में मेडिकल कॉलेज खोले जाएंगे। यह NEP 2020 (नई शिक्षा नीति) के उस मूल सिद्धांत से जुड़ा हुआ है, जिसमें मातृभाषा में शिक्षा को प्राथमिकता दी गई है। इसके अतिरिक्त इस मॉडल से स्वास्थ्य के क्षेत्र में समानता और पहुंच को बढ़ावा मिलेगा। मेडिकल कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्रों को अब अंग्रेजी की जगह हिंदी में सोचने, लिखने और उत्तर देने की छूट होगी, जिससे वे अधिक आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी बनेंगे। प्रधानमंत्री मोदी ने इसे ‘भाषाई न्याय’ की संज्ञा दी है – एक ऐसा कदम जो शिक्षा में भी समता का आदान-प्रदान सुनिश्चित करेगा।

निष्कर्ष

जबलपुर में खुलने जा रहा हिंदी माध्यम का यह मेडिकल कॉलेज न केवल एक शैक्षणिक प्रयोग है, बल्कि यह सामाजिक समानता, शिक्षा में पहुंच और मातृभाषा के गौरव का प्रतीक भी है। यह पहल भविष्य के डॉक्टरों की सोच, अभिव्यक्ति और सेवा की गुणवत्ता को भी बदलेगी। इस तरह की योजनाओं से यह स्पष्ट है कि भारत अब ज्ञान को भाषा के बंधन से मुक्त कर रहा है और हर छात्र को अपने सपनों को पूरा करने का अवसर दे रहा है – अपनी ही भाषा में।

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