अमेरिकी कंपनियों को मिली G7 कर छूट: वैश्विक कर समानता पर मंडराता संकट

28 जून 2025 को G7 देशों द्वारा लिया गया एक अहम फैसला अंतरराष्ट्रीय कर प्रणाली में ऐतिहासिक मोड़ ला सकता है। इस निर्णय के अनुसार, G7 देशों ने अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को 15% वैश्विक न्यूनतम कर व्यवस्था से छूट देने की सैद्धांतिक सहमति दी है। यह निर्णय वैश्विक टैक्स सहयोग और OECD कर ढांचे 2021 के तहत वर्षों की गई कोशिशों को प्रभावित कर सकता है।

G7 कर छूट निर्णय: क्या है मामला?

इस निर्णय के अनुसार, अब अमेरिकी कंपनियों को उन देशों में कर नहीं देना पड़ेगा, जहां वे व्यवसाय करती हैं, बल्कि केवल अमेरिका में ही कर देनदारी रहेगी। इसे “साइड-बाय-साइड” मॉडल कहा गया है। यह मॉडल पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शासनकाल में लाए गए कर प्रस्तावों पर आधारित है, जिसे अब नए रूप में प्रस्तुत किया गया है।

प्रमुख बातें

अमेरिकी कंपनियों को सिर्फ अमेरिका में टैक्स देना होगा।

विदेशों में ऑपरेटिंग देशों में कर नहीं लगेगा।

OECD द्वारा निर्धारित वैश्विक न्यूनतम कर नियमों से छूट दी जाएगी।

OECD का वैश्विक कर ढांचा (2021 समझौता)

2021 में OECD (Organisation for Economic Co-operation and Development) द्वारा स्थापित कर ढांचा दो प्रमुख स्तंभों (Pillars) पर आधारित है:

स्तम्भ 1

बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कर अधिकारों का पुनर्वितरण किया जाना ताकि जिस देश में वे वास्तव में कारोबार करती हैं, वहां टैक्स लगाया जा सके।

स्तम्भ 2

15% का वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट टैक्स लागू किया गया ताकि टैक्स हेवेन और कर-आधार क्षरण को रोका जा सके।

इस ढांचे का उद्देश्य कर पारदर्शिता, निष्पक्षता और वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देना था। लेकिन अमेरिका ने शुरुआत से ही इसमें अपनी असहमति जताई थी, विशेषकर ट्रंप शासन के दौरान।

G7 कर छूट पर जी7 देशों का रुख और बयान

G7 कर छूट पर मिली G7 देशों का रुख

28 जून 2025 को हुई बैठक में, कनाडा की अध्यक्षता में हुए G7 सम्मेलन ने संयुक्त बयान जारी कर इस छूट पर सहमति दी। G7 में शामिल देश हैं ।

1.अमेरिका 2.ब्रिटेन 3.फ्रांस 4.जर्मनी 5.जापान 6.इटली 7. कनाडा

निर्णय का मुख्य आधार

> “अमेरिकी कंपनियों को वैश्विक संचालन के लिए कर छूट देकर निवेश को प्रोत्साहित करना और घरेलू अनुपालन को आसान बनाना।”

साइड-बाय-साइड मॉडल क्या है?

साइड-बाय-साइड” मॉडल के अंतर्गत अब अमेरिका की बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर केवल अमेरिका में कर लगाया जाएगा।विदेशी देशों को इन कंपनियों पर कर लगाने का अधिकार नहीं होगा।

यह मॉडल दोहरे कराधान से बचाव, अनुपालन बोझ को कम करने और विदेशी निवेश को आकर्षित करने की मंशा से लाया गया है।

किसे मिलेगा लाभ?

1. अमेरिकी कंपनियों को कम टैक्स देना होगा

विदेशी देशों के अलग-अलग टैक्स कानूनों से राहत

दोहरे कर से बचाव

2. अमेरिका को निवेश आकर्षित करने का मौका

घरेलू टैक्स आधार मज़बूत करना,

अमेरिकी तकनीकी कंपनियों को सुरक्षा देना

संभावित नुकसान और वैश्विक असर

1. वैश्विक टैक्स सहयोग को नुकसान

इस निर्णय से OECD के वैश्विक कर समझौते को कमजोर किया जा सकता है।

2. अन्य देशों द्वारा भी समान छूट की संभावना

यदि अमेरिका को छूट मिलती है, तो अन्य शक्तिशाली देश भी एकतरफा छूट दे सकते हैं, जिससे कर प्रणाली में असमानता बढ़ेगी।

3. दोहरी कर प्रणाली का खतरा

यह निर्णय वैश्विक टैक्स प्रणाली में दोहराव और भ्रम पैदा कर सकता है।

4. न्यायपूर्ण प्रतिस्पर्धा को नुकसान

छोटे और विकासशील देशों के लिए यह निर्णय प्रतिस्पर्धात्मक असंतुलन ला सकता है।

ट्रंप की नीति और “One Big Beautiful Bill”

इस नीति बदलाव की जड़ें ट्रंप प्रशासन की उस पहल में हैं जिसे उन्होंने “One Big Beautiful Bill” कहा था। यह एक घरेलू विधेयक है जिसमें धारा 899 जैसे कई प्रावधान हैं जो अमेरिका को अधिकार देता है कि वह उन विदेशी निवेशकों पर कर लगाए जो अमेरिकी कंपनियों पर “अनुचित टैक्स” लगाते हैं।

धारा 899 विवाद क्या है?

इसे “बदला कर (Revenge Tax)” कहा गया।

यह धारणा बनती है कि अमेरिका अब कर नीतियों के ज़रिए प्रतिकारात्मक व्यापार रणनीति लागू कर सकता है।

OECD की अंतिम स्वीकृति अभी शेष

यह छूट फिलहाल OECD की अंतिम मंजूरी के अधीन है। यदि इसे स्वीकृति मिलती है, तो यह नीति औपचारिक रूप से लागू की जा सकती है। परंतु OECD में कई सदस्य देश अभी इस छूट को लेकर असहमत हैं।

वैश्विक परिदृश्य में भारत का दृष्टिकोण

भारत जैसे विकासशील देशों के लिए यह कर छूट गंभीर नीति चुनौती पेश करती है। यदि बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में कारोबार करके भी भारत में टैक्स नहीं देंगी, तो इससे राजस्व हानि होगी डिजिटल कंपनियों पर नियंत्रण कमजोर होगा

घरेलू कारोबारियों को असमान प्रतिस्पर्धा झेलनी पड़ेगी

भारत ने पहले भी डिजिटल सेवा कर (Equalisation Levy) के जरिए ऐसे मुद्दों को संबोधित किया है, और भविष्य में भारत को भी कर नीति में बदलाव करने पड़ सकते हैं।

निष्कर्ष

G7 देशों द्वारा अमेरिकी कंपनियों को दी गई कर छूट वैश्विक कर प्रणाली में एक ऐतिहासिक बदलाव का संकेत है। यह निर्णय यदि OECD द्वारा स्वीकृत हो जाता है, तो यह वैश्विक टैक्स समानता के लिए खतरा साबित हो सकता है। यह एकतरफा नीति न केवल OECD कर समझौते को कमजोर करती है, बल्कि भारत जैसे देशों के कर ढांचे पर भी गंभीर प्रभाव डाल सकती है।

भविष्य की चुनौती

> अंतरराष्ट्रीय कर प्रणाली को संतुलित, पारदर्शी, और न्यायसंगत बनाए रखने के लिए अब और अधिक सहयोग और पुनर्विचार की आवश्यकता है।

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